Monday, July 13, 2009

लुढ़क लोटे लुढ़क !!!

चुन्नी लाल जी की चर्चा जब कर ही रहा हूँ, तो उनके किस्से आगे सुनाता हूँ!
चुन्नी भैया तो ब्लॉग देखने से रहे | अगर भूले भटके देख लिया तो मेरी खैर नहीं | पर जब औंखली में सर दे ही दिया तो मूसलों से क्या डरना!!
चुन्नी भैया वैसे किसान आदमी हैं | अच्छी जमीन है खुद ही हल जोतते हैं | मेहनती इंसान है |
चाय के बड़े रसिया है, जब चाय पीते है तो किसी प्रकार की दखलंदाजी पसंद नहीं करते है | एक बार जब खेत में हल जोतने गए | खेत भी गांव से लगभग 9 किलोमीटर (तीन कोस) और वो राजस्थानी रेतीला इलाका, जहां चलने पर लगता है एक ही जगह पर रेत पैरों से आटे की तरह सान रहें हैं |
खेत पहुँचने के बाद पुरे दिन खेत की जुताई की | शाम का वक़्त घर आने की तैयारी | बड़ी तबियत से सारा दूध डाल कर चाय बनाई और सोच रहे हैं : आह बड़ी बड़ी चुस्कियां ले कर चाय पिउंगा और फिर रवाना होउंगा ! यही सोचते हुए चाय छान रहे हैं लोटे में |
पूरी चाय छान चुके लोटे में पिने की हड़बड़ी में लोटा लुढ़क गया, और सारी चाय रेत के समंदर में समा गयी | चुन्नी लाजी का गुस्सा जाग उठा !!!
खड़े होकर लोटे को ठोकर मारी और बोले :में तो चाय पिए बिना ही रह जाउंगा तू तो लुढ़क | और सज्जनों सच मानो उस लोटे को ठोकर मारते मारते गाँव की तरफ ला रहे हैं और यही बात दोहरा रहे हैं :में तो चाय पिए बिना ही रह जाउंगा तू तो लुढ़क !! लुढ़क!! लुढ़क!!