सचमुच सकारात्मक सोच के जादू का  तब तक पता नहीं चलता जब तक हम आजमा के न देख लेवें! अब अविनाशजी ने बिजली  न  होने  से भी  खुश रहना  सिख    लिया !  यही  महान   व्यक्तियों   की सोचने   की कला  है  ! 
महान  व्यक्तियों  के  सोचने  की   दिशा   हमेशां   अलग   रही   है ! 
अविनाश  जी   का कहना   है की बिजली   नहीं रहने  से टी . वी  नहीं देख पाते , मोबाइल  से बात  नहीं कर  पाते  ,पर हम तो भाई  बिना  बिजली  के भी  कैसे  न  कैसे  करके  टी .वी    मोमबती  जला  के भी  देखते रहते  हैं, की इसी  में तो  सब  कुछ  आता   है, और  कभी  भी  वो सब  वापस  आ  सकते हैं जो  बिजली के साथ  गए  हैं!
मोबाईल  पर बीवी  की झकझक  सुनने  से बचने  के लिए  झूठ  मुठ   ही बतियाते  रहते  हैं : हां जी    कल  मैं  पैसे  के लिए  आ  रहा  हूँ , नहीं यार  कम  से कम  15-20 तो कर  देना  ......ओके ...हाँ  ..हाँ  ... हेल्लो  ..हाँ  फोन  रखना  नहीं यार    ...बड़ी   लम्बी   बात   करनी   हैं......यार  ..a to  a फ्री   है न. हाँ ... कभी  तो बिजली आयेगी ! उम्मीद    पर तो दुनिया   कायम    हैं और   पोजिटिव   थिंकिंग   का जादू चल   ही जाता   है! सिर्फ   दो   घंटे   के बाद   ही लाइट   आ  जाती   है , ये   बताने   की आपने   ये   जो  घर   में  मीटर   बिठा   रखा   है  और  जो  तारें  लगा  राखी  हैं व्यर्थ  नहीं हैं इन्हें  उखाड़ने  का प्रयास  भी  ना  करें!
अभी  कुछ  दिन  से खाना  अकेला  ही पका  रहा हूँ  इसीलिए  ब्लोगिंग  का  समय  नहीं मिल  पाता   काम  धंधा  ज़माने  के लिए  मेहनत  कम  और  पोजिटिव  थिंकिंग  ज्यादा  करता  हूँ  !
अब रसोई में जगह  जगह  चीनी  के गिरने  से मोटे  वाले  मकोड़ों  ने धावा  बोल  दिया ! रोज  आने  लगे  मैंने  गौर  किया  इनकी  थिंकिंग  इतनी  पोजिटिव  हैं, की रोज  ये  पक्का   विस्वास  करके  आते  हैं की कहीं  न कहीं  मीठा  खाने  को  मिल  ही जाएगा  ! 
सचमुच मिल  ही जाता  है कभी  चाय  के सस्पेन  में , कभी  ग्लास  में  और  कभी  चीनी  का डब्बा  खुला  रह जाता  है ! सचमुच यहाँ  पर दो  बातें  चरितार्थ  होती  है एक ये  की शक्कर  खोरे  को  शक्कर  मिल  ही जाती  है और  दूसरी  ये  की पोजिटिव   थिंकिंग  रखने   से जादुई  परिणाम  निकलते  हैं !
अब कल  गैस ख़त्म   हो  गई  तो दो  दिन  कुछ  बना  नहीं मकोड़ों  ने पलायन  शुरू  कर  दिया ! एक दो  मकोड़े  कुछ  ज्यादा  ही पोजिटिव  थिंकिंग  वाले  थे  जो  बहुत  पतले  हो  गए  थे , पर जी  जान   से इधर  उधर  भटक  रहे  थे  की कहीं  ना  कहीं तो कुछ मीठा मिलेगा ही मिलेगा !
मैंने  रसोई  में  कदम रक्खा  तो सुनी  पड़ी  रसोई  को  देखकर  जरा  मन  उदास   हो  गया  ! जिन  मकोड़ों  से मैं  बातचीत  करते  रहता   हूँ  वो मकोड़े  गायब  हो  गए  हैं ! मैंने  देखा  दो  मकोड़े  जो  थिंक  थिंक   के दम  तोड़ने  वाले  थे, बस वही बचे थे ! 
मैंने  चीनी  का  घोल   बनाया   और  उनके   सामने   परोस   दिया   ...पर ये  क्या  .. वो दोनों   मकोड़े  चीनी  के घोल   को  सूंघ  कर दौड़   पड़े   मैंने  सोचा,  शायद  ये  सोच रहे  हैं की इसमें  कोई  साजिस  है ! मन  व्यथित  हो  गया  उनको  कितना  समझाया की यार किसी इन्सान पर तो विस्वास करलो !
पर नहीं माने  और  वाश  बेशन  के निचे  वाली  गली  से पतले  हो  लिए . 
इनको   समझाने  और  चीनी  का घोल  देने  में  मेरा  स्वार्थ  था, मकोड़ों   की पोजिटिव  थिंकिंग  का असर,  
मुझे  लगता  था की मकोड़े  हमेशां  यही  सोचते  हैं की यहाँ मीठा  मिलेगा  और  मीठा  तभी  घर  में  बनेगा  जब ख़ुशी  रहेगी  और  ख़ुशी  तभी  रहेगी  जब एंटी  में   दमड़ी  रहेगी,  इतना  बड़ा   लंबा  पोजिटिव  थिंकिंग  का जाल  ....!
एक आदमी  की पोजिटिव  थिंकिंग  से अगर  कम   नहीं बनता  है तो इतने  मकोड़े  मील  कर  अगर  पोजिटिव  थिन्कियायेंगे  तो रिजल्ट  अच्छा  आना   ही आना  है! 
अच्छा  अब जो   दो  मकोड़े  चले  गए  थे   वो वापस  आ   गए  साथ  में  और  कई  मकोड़े  मकोड़ीया   भी  थे !
बात  अब समझ  में  आइ  की वो भागे  नहीं थे  बल्कि  सब  को  बुलाकर  लाये  थे ! 
अगर  मकोड़ों  की सोच से सोचा  होगा   तो यही  सोचा  होगा  की हम अकेले   क्यूँ  खाएं  सबको  खिलाएं , और  अगर  इंसानों  की सोच से सोचा  होगा  तो मकोड़ों  ने ये  सोचा  होगा  की अगर  ये  घोल  देने  में  कोई  साजिश  है तो पहले  दूसरों  को  खिला  के देखते  हैं या  साजिस  का शिकार  हम अकेले  क्यूँ  बने  !! 
खैर   मकोड़ों  ने  जो  भी  सोचा  !! पोजिटिव  थिंकिंग  के बारे   में  आप  क्या  सोचते  हैं?????
अब एक सवाल यहाँ  निचे प्लयेर में !!(song Ek swal tum karo Flute)
Sunday, July 11, 2010
Subscribe to:
Comments (Atom)
 
