Saturday, July 25, 2009

मेरे देश से मत लो पंगा |

देखो मेरे देश से मत लो कोई पंगा |
ढंग से रहो पाड़ोसी वरना कर देंगे बेढंगा ||

पता नहीं क्या तुमको कैसे वीर जवान हमारे है|
डाट डाट रक्खा है इनको कबसे हाथ संवारे है ||
सिक्ख गोरखा जाट मराठा आसामी और बंगा | ढंग से रहो .... .|

सोए शेर जवान हमारे क्यूँ इनको जगाते हो |
ओ दुर्बुद्धि ओ नालायक क्यूँ अपनी मौत बुलाते हो||
चीर डालेंगे पल में तुझको मार के अपना पंजा | ढंग से रहो......|

Thursday, July 23, 2009

मैं मिला हूँ भुत से!!!

बात राजस्थान के खाजुवाले शहर की है जो पकिस्तान के बॉर्डर के थोडा नजदीक है ! सन १९९५ की बात है जब में प्राइवेट राशन दूकान में प्रशिक्षण ले रहा था | आटा चावल नापने का, मघराज जो की दूकान का मालिक था, बहुत नेक और सीधा इंसान है, हम दोनों बड़े प्रेम से रहते थे |
एक दिन जब हम दूकान से शाम के वक़्त घर गए तो मघराज की बीवी जो अजीब अजीब हरकतें कर रही थी, जैसे खिल खिला के हँसाना, कभी रोना कभी गुस्सा, और बारबार ये ही दोहरा रही थी "हलुवा खाऊँगी" "हलुवा खाऊँगी"| मघराज की दोनों बहने काफी डरी हुई थी |
मघराज जो की भुत प्रेत पे विस्वास नहीं करता था| अपनी बीवी को झापड़ रसीद करते हुए बोला : ज्यादा जी में आ रही है क्या हलुवा खाने की ? लेकिन उसे थप्पड़ से कोई फर्क नहीं पडा निरंतर हलुवा खाने की रट लगाए रखी | मैं बोला मघराज भाभी जी में कोई हलुवे की भूखी आत्मा ने प्रवेश किया है |
मघराज बोला : अबे तेरे को भी हलुवा खाने की जी में है क्या ?
मैं बोला : देखो अगर भुत के लिए बनाओगे तो दो गासिये में भी ले ही लूंगा |
मघराज बोला : यार मुरारी ये भुत वुत कुछ नहीं होता, दरअसल औरतें जब काम करने का मन नहीं होता तो इस प्रकार के अड़ंगेबाजी करतीं हैं |
मैंने उसे समझाया : भाई मघु भाभी जी ऐसी नहीं है तुम क्यूँ नहीं किसी मौलवी या झाड़ फूंक वाले को बुला लाते | मेरे बार बार जोर देने पे मघराज एक मौलवी के पास गया| पर मौलवी के पास हमसे बड़ा कलाइंट बैठा था |
मोलवी ने मघराज को उपाय बता के टरका दिया | मघराज ने आकर बताया : मौलवी ने कहा है छोटी अंगुली के पौर को पकड़ कर जोर से भींचना (दबाना) |
मैं बोला: जल्दी करो इससे पहले की हलुवे का भूखा भुत कुछ अनिष्ट करे भाभी जी की छोटी अंगुली का पौर पकडो और जल्दी से भिन्चो |
अब मघराज अपनी बीबी के पास बैठ कर बोला : रे भुत इब तेरा देख में के करूँ हूँ ! कहने के साथ ही छोटी अंगुली के सिरे को जोर से दबाया |
मारे दर्द के भाभी जी के अन्दर बैठा भुत बोल पडा: जा रहा हूँ!!! जा रहा हूँ !! और भाभी जी शांत | पर अचानक मघराज की बहन जोर जोर से रोने लगी, और डरने लगी|
मघराज बोला : तुझे क्या हो गया ? इस पर मघराज की बहन बोली : देखो ये काली साडी में एक औरत यहाँ बैठी है | मौलवी जी ने मघराज को सुखी मिर्च का धुंवा करने के लिए भी बोला था | हाथो हाथ मिर्च का धुंवा किया और उस भुत को भगाया गया | अब सब कुछ सामान्य था |

घर के पिछवाडे में मघराज की बीबी और बहन बर्तन साफ़ कर रही थी और मुझे उनके पास खडा किया गया रात के लगभग ११:३० बज चुके थे | घर के पिछवाडे में boundry waal बनाई हुई थी जो लगभग तीन फीट ऊँची थी |
मेरी नजर अचानक उस baondry wall की तरफ गयी | आज भी सिहरन दौड़ जाती है जब वो वाकया करता हूँ तो |मैंने उस bouandry wall पे देखा एक विशालकाय काला शाया जिसका उपरतक कोई अंत नहीं था | मुझे डर तो बहुत लगा, पर मैंने भाभी जी को और मघराज की बहन को कुछ नहीं बताया |
मन ही मन सोच रहा था भूतों के बारे में लोगों से सूना है | किताबों में पढा है, आज साक्षात्कार भी हो गया | पर ज़रा पास में जाकर देखना होगा |
स:अक्षर सही बता रहा हूँ, में धीरेधीरे baoundry की तरफ बढ़ रहा था | पता नहीं कहाँ से हिम्मत आई कैसे बढ़ता गया, जैसे जैसे आगे बढ़ रहा हूँ उस लम्बे काले साए का आकार घटता चला जा रहा है| में और करीब गया अब उस शाये के और मेरे बिच की दुरी थी लगभग १५ फुट | शाये का आकार अब भी लगभग २५ फुट | मैंने निश्चय किया की और आगे बढा जाए कुछ हेल्लो हाय करके तो आएँ | शाये का आकार घटते घटते १० फुट हो गया | मुझे भी तसल्ली हो रही थी की ये भी मुझसे मिलना चाह रहा है, इसे पता है उतनी ऊंचाई पे मेरा हाथ पहुँच नहीं पाएगा तो हाथ मिलाएगा कैसे | उसका दोस्ताना रवैया देख कर हौशला और बढा, तो मैं भी बढा|

अब शाये का कद ५ फुट के आस पास आ गया | और हमारे बिच की दुरी लगभग ६ फुट अब तो मेने निश्चय किया की आज तो मुलाक़ात करनी ही है, बढ़ता रहा अब उसका कद हो गया था लगभग ३ फुट और एक आश्चर्य जनक बात ये हुई की उसके सर पे सिंग निकल आये थे | मैं एक दम करीब पहुँच गया | जनाब सर हिलाने लगे मैंने सर पे हाथ लगाया पता चला दीवार की उस तरफ पास में बंधी भैंस जो दीवार के ऊपर से इस तरफ झांक रही थी | मैंने उसे सहलाया |भुत से मुलाक़ात हो चुकी थी |

अगर मैं उस दिन उसके पास ना जाता, चुप चाप अन्दर आ के सो जाता तो मेरे लिए वो भुत ही रहता, और मन के अन्दर घुसे उस भुत को निकलाना शायद नामुमकिन हो जता | कुछ भूत ऐसे होते हैं इस बात का प्रत्यक्ष पता चला | इसीलिए कहते हैं डर के पास जाओ तो डर मिट जाता है !!!!

Sunday, July 19, 2009

मुरारी और उल्लू में समानता !!

नमस्कार,
अपना नाम करने के चक्कर में मैंने अपने ही ऊपर लेख लिख कर टेलेग्राफ पेपर मैं भेजा,और प्रकाशित भी हुआ,पर जिस दिन मेरा लेख प्रकाशित होना था, उसी दिन उल्लू पर भी लेख प्रकाशित हुआ,अब क्या बताऊँ की क्या हुआ, मेरे नाम की जगह उल्लू का और उल्लू के नाम की जगह मेरा हो गया राम जाने क्या हेर फेर हुई, खैर लेख कुछ इस तरह था!
उल्लू !! ये नाम सुनते ही लोगों के होठों पर हंसी अपने आप ही आ जाती है, ये उल्लू पिछले २५ साल से कॉमेडी करता आ रहा है, देखने मैं बहुत शांत पर इसकी फितरत मैं कॉमेडी कूट कूट के भरी हुई है, बस मुह से बात निकली नहीं की कॉमेडी बन गयी! और भगवान् ने इस उल्लू को गला भी ऐसा बख्शा है की बोलते ही लोगों को हंसी आ जाये, जब भी ये उल्लू कहीं गमगीन माहोल देखता है धीरे से अपनी बात सरका देता है, कई जगह तो ये उल्लू पिटते पिटते बचा, एक बुजुर्ग की मौत पर जहां मातम हो रहा था, उल्लू बोल पड़ा "जब जिन्दा था तो उसको मारने की जल्दी थी अब मर गया तो हाय क्यूँ मर गया अब किसको कोसेंगे " लोग बरस पड़े, पर सबको मालूम था की बेचारा आदत से लाचार है ये उल्लू !!
ये लेख मेरे लिए प्रकाशित हुआ, और दूसरी तरफ उल्लू पर जो लेख लिखा गया वो इस तरह था!
"मुरारी" नाम सुनते ही शारीर मैं कंप कम्पी सी दौड़ जाती है, मुरारी रात को ही निकालता है,लोगों का मानना है की मुरारी बहुत बहुत मुर्ख होता है इसीलिए ये कहावत बन गई की मैंने तुम्हे मुरारी बना दिया, या तुम तो बिलकुल ही मुरारी हो, मुरारी का पठ्ठा,लेकिन धर्म ये मुताबिक ये लक्ष्मी की सवारी भी है लक्ष्मीजी की फोटो के नीचे बैठा मिलेगा मुरारी ! मुरारी की बड़ी बड़ी आँखें बहुत डरावनी होती हैं, आंखें जीतनी डरावनी है चेहरा भी चकोर और भयानक है, और आवाज तो इतनी भयानक है की सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते है,

तांत्रिक क्रिया मैं मुरारी की अहम् भूमिका बताते है, कहते हैं मुरारी की खोपडी मैं काजल बना के लगाया जाये तो सम्मोहन दृष्टि प्राप्त होती है, और मुरारी की हड्डियों की राख़ का सुरमा आँखों मैं लगाया जाये तो भुत भविष्य सब दिखाई देते हैं, इसीलिए तंत्र क्रिया करने वाले इनके जान के पीछे पड़े रहते हैं,
अब ये लेख छपने के बाद लोग बन्दूक ले कर मेरे पीछे पड़ गए हैं,कईयों ने तो घरवालों को अडवांस पैसे दे दिए की मरने के बाद खोपडी और हड्डी हमें दीजियेगा.दुसरे दिन उसी समाचार पत्र मैं माफीनामा भी प्रकाशित हुआ, कुछ इस तरह.कल जो दो लेख हमने प्रकाशित किये थे उल्लू के ऊपर और मुरारी के ऊपर दरअसल जो मुरारी था वो उल्लू था, और जो उल्लू था वो मुरारी था, अब लोगों की समझ मैं आगया की मुरारी उल्लू ही है !!!!

Saturday, July 18, 2009

चुन्नी लालजी का गुस्सा ! गुबरीले पे

(हास्य सत्य घटनाए)
चुन्नी भैया के कारनामे इतने हैं की एक रामयाणाकार पुस्तक प्रकाशित की जा सकती है| एक बार दोस्तों के साथ बैठे पतियाँ खेल रहे थे |
एक गुबरीला(गोबर मैं रहने वाला जीव) उनकी तरफ आता है और पैर पे चढ़ने लगता है | अब चुन्नी लालजी उसे पकड़ के दूर फेंकते हैं | फिर खेलने में व्यस्त | गुबरीला फिर आता है, और उनके पैर पे चढाने लगता है|
चुन्नी लालजी फिर उसे हाथ से पकड़ के दूर फेंकते हैं, धीरे धीरे कुछ बुदबुदा भी रहे हैं| अब साथी लोग शिकायत करते हुए कहते हैं : अरे के हुयो चुन्नी पत्ता डाल |
चुनी : अरे डाल रहा हूँ यार | चुन्नी भैया हार रहे हैं इतने में गुबरीला आदतन फिर आता है|( गुबरीले के बारे में ये कहावत है की जिधर से फेंकते हैं मुड़कर फिर उसी दिशा में जाता है ) जैसे ही चुन्नी भैया के पर पे चढ़ता है | क्रोधित सांड के माफिक गुबरीले को हाथ में पकड़ते हैं, और दौड़ लगाते है गाँव के खाली पड़े कुए की तरफ | अब कुवे के पास पहुँच कर गुबरीले को कुवें में फ़ेंक देते है | और फिर जोर से आवाज लगाते हैं: आजा !!! अब आजा !!! आ के दिखा मैं दो घंटा यहीं हूँ आ !! आजा !!! आता क्यूँ नहीं!!!

Wednesday, July 15, 2009

आखिर चोट माथे पे कैसे लगी!!

चुन्नी लालजी के किस्से बहुत सारे है | सब हकीकत कोई मिलावट नहीं एक दम शुद्ध गांवलिया |
किसान आदमी को बहुत सारे काम रहते हैं ऑफ सीज़न में भी | ऐसे ही एक बार हल की रेपैरिंग करने बैठे थे | सोचा आगे खेती की सीज़न आ रही है | हल को थोडा ठीक ठाक कर लिया जाए | तो हल के अन्दर जो लोहे की पत्ती होती उसे निकालने में लगे हैं ! अंगने में लम्बी टांगो को जमीन पर पसार कर बेठे और दोनों हाथों से खिंच कर हल की पत्ती को निकालने का प्रयास करने लगे | कोशिश करते करते अचानक पत्ती निकल गई | सर को पूरी तरह ऊपर झुका रखा था | फलस्वरूप झटके से निकली पत्ती सीधी माथे पर जा लगी और माथे पर खरोंच आ गई, पर ज्यादा चोट नहीं आई|
पर चुन्नी लालजी दहाड़े मार मार कर रोने लगे |लोगों को आश्चर्य हुआ |
वहाँ उपस्थित लोगों ने समझाया : अरे चुन्नी भैया ज्यादा चोट नहीं आई इतना क्यों रो रहे हो?
चुन्नी भैया बोले - इसलिए नहीं रो रहा की चोट लगी है, इसलिए रो रहा हूँ, की अब किस किस को बताउंगा की चोट कैसे लगी ? पूछने वाले पूछ पूछ के मार लेंगे, की हल की पत्ती की चोट आखिर सर पे कैसे लगी ? बार बार कुवे में भी नहीं कूद सकता !!!

Monday, July 13, 2009

लुढ़क लोटे लुढ़क !!!

चुन्नी लाल जी की चर्चा जब कर ही रहा हूँ, तो उनके किस्से आगे सुनाता हूँ!
चुन्नी भैया तो ब्लॉग देखने से रहे | अगर भूले भटके देख लिया तो मेरी खैर नहीं | पर जब औंखली में सर दे ही दिया तो मूसलों से क्या डरना!!
चुन्नी भैया वैसे किसान आदमी हैं | अच्छी जमीन है खुद ही हल जोतते हैं | मेहनती इंसान है |
चाय के बड़े रसिया है, जब चाय पीते है तो किसी प्रकार की दखलंदाजी पसंद नहीं करते है | एक बार जब खेत में हल जोतने गए | खेत भी गांव से लगभग 9 किलोमीटर (तीन कोस) और वो राजस्थानी रेतीला इलाका, जहां चलने पर लगता है एक ही जगह पर रेत पैरों से आटे की तरह सान रहें हैं |
खेत पहुँचने के बाद पुरे दिन खेत की जुताई की | शाम का वक़्त घर आने की तैयारी | बड़ी तबियत से सारा दूध डाल कर चाय बनाई और सोच रहे हैं : आह बड़ी बड़ी चुस्कियां ले कर चाय पिउंगा और फिर रवाना होउंगा ! यही सोचते हुए चाय छान रहे हैं लोटे में |
पूरी चाय छान चुके लोटे में पिने की हड़बड़ी में लोटा लुढ़क गया, और सारी चाय रेत के समंदर में समा गयी | चुन्नी लाजी का गुस्सा जाग उठा !!!
खड़े होकर लोटे को ठोकर मारी और बोले :में तो चाय पिए बिना ही रह जाउंगा तू तो लुढ़क | और सज्जनों सच मानो उस लोटे को ठोकर मारते मारते गाँव की तरफ ला रहे हैं और यही बात दोहरा रहे हैं :में तो चाय पिए बिना ही रह जाउंगा तू तो लुढ़क !! लुढ़क!! लुढ़क!!

Friday, July 10, 2009

बकरा पांच सौ मैं बेचा

हमारे गाँव के चुन्नी लालजी बड़े गुस्सेल और चिडचिडे स्वभाव के व्यक्ति हैं | उनके पास एक बकरा है और वो उस बकरे को बेचना चाहते थे | पर कोई अच्छे दाम देने वाला मिला नहीं | गांव में कोई भी बकरे का व्यापारी आता है, तो गांव वाले ऊँगली सीध करते हैं चुन्नी लालजी की|
बताते हैं की : बकरा तो है चुन्नी भैया के पास जाओ ले लो|
अब व्यापारी आया चुन्नी लालजी के घर पे : जय रामजी की जी चुन्नी लालजी!!
चुन्नी लालजी: जे रामजी बोलो क्या बात है ?
व्यापारी: आपके पास बकरा बताया है!
चुन्नी लालजी: हाँ है तो??
व्यापारी : क्या भाव ताव है?
चुन्नी लालजी: ये देख ले बकरा अब बता कितने देगा ?
व्यापारी: देखिये इस बकरे के मैं आपको आठ सौ रुपये दे सकता हूँ!!
चु.ला : नहीं देना है, जा कहीं दूसरी जगह मिलता है तो ले ले|
इस प्रकार कई व्यापारी आये एक हजार रूपये तक दर मुलाई कर गए पर चुन्नी लालजी को लग रहा है जैसे वो बकरा नहीं ऊंट बेच रहे हैं| अब चुन्नी लालजी ने सोचा क्यूँ न मंडी जाया जाये और अच्छे दामों में बकरा बेचकर आया जाए |मन बनाया अगली सुबह चार बजे ही बकरे को ले के चल दिए मंडी, जो की गांव से २५ किलोमीटर दुरी पे है| पैदल चलना राजस्थानी गर्मी मैं वो भी चुरू जिले की गर्मी जहां रिकार्ड गर्मी पड़ती है | ८ -९ बजे पहुंचे मंडी वहाँ चारों तरफ घूम फिरने के बाद बकरा बिका मात्र पांच सो रुपैये मैं|अब क्या करें कहावत हैं ना की "चोर की माँ किसमे मुह दे के रोवे"| बकरा बेच के जैसे तैसे गाँव लिया |
अब गाँव का तो आपको पता ही है, लोगों को काम धाम रहता है नहीं बस कोई मिला की हालचाल पूछ लिया | वही हुआ गाँव मैं घुसते ही भानारामजी मिल गए पूछ बैठे : अरे चुन्नी काका कहाँ से आ रहे हो?
चु.ला: अरे शहर गया था?
भानारामजी: शहर क्यों भई?
चु.ला: अरे बकरा बेचने गया था|
भाना: ओहो हाँ तुम्हारे एक बकरा था|
चु.ला :के बात कर रिये बकरा मेरे नहीं बकरी का था|
भाना: हाँ हाँ वही कह रहा हूँ काका ! अच्छा कितने में बेचा काका?
चु.ला: पाच सौ में |
भाना : काका तेरा तो दमाग फिरग्या गाँव मैं बेपारी आया था तने १००० रुपैये तक दे रया था , नहीं बेचा, शहर जा के पांच सौ मैं बेच के आया ? वाह र काका?
चु.ला: अरे ज्यादा बकवास मत करिए, मेरो बकरों मैं बेच्यो तने के तकलीफ जा काम कर तेरो|
अब भाना रामजी से निपटने के बाद आगे मिल गए सीतारामजी | कमजोर दृष्टि से पहचानने की कोशिस करते हुए बोले :अरे कौन है भाई ?
चु.ला: चुन्नी हूँ काका |
सीतारामजी: अरे चुन्नी कहाँ जा कर आ गया?
चु.ला: शहर गया था काका |
सीतारामजी: अरे शहर किस काम से गए थे ?
चु.ला: अरे अपना वो बकरा बेच के आ रहा हूँ|
सीतारामजी: अच्छा अच्छा !! वो बकरा बेच दिया ? कितने मैं बेचा ??
चु.ला: पांच सौ रुपैये मैं बेचा काका |
सीताराम : र सित्यानाश जा तेरा !! गांव मैं बेपारी १००० रुपये दे रया था नहीं बेचा वहाँ बाप का नाम निकाल के आया है?? (मुह बनाते हुए) पांच सौ मैं बेचा!!
चुन्नी लाल का पारा सातवें असमान पे : रे काका मुह संभाल कर बात करियो !! काकाई धरी रे ज्यागी!! तन्ने क्यूँ पीढ होवे मेरो बकरों मेरो लेण मेरो देण चल भग्ज्या!!!
अब काका सीताराम रस्ते लग लिया | चुन्नी लालजी यात्रा और पूछ ताछ से परेशान,की आगे किशन लालजी मास्टर मिल गए |
किशन लालजी : अरे एक मिनट, चुन्नी भाया!! कहाँ से आयो?
चुन्नी लालजी गुस्सा तो बहुत आ रहा है पर क्या करें मास्टरजी हैं सो बताना तो पडेगा वरना लड़के की पढाई मैं व्यवधान |
चु.ला: अरे मास्टर यार शहर गयो थो |
मास्टरजी: ओहो !!शहर किस काम से गयो थो भाई?
चु.ला: अरे अपना वो बकरा था ना वो बेच के आ रहा हूँ |
मास्टरजी : अच्छा !!!! वो बकरा आखिर बेच ही दिया कितने रुपये बँटे भाई?
चु.ला: अरे यार क्या बने पाच सौ में बेचा |
मास्टरजी : रे बावली बुच्च घणा होशियार बणे था तू तो, गाँव मैं १००० रुपैये मैं भी नहीं बेचा और शहर जा कर ५०० में बेचा!! तू पागल होगया की होने जा रहा है?
चु.ला: रे ओय मायटर छोरान ने पढाने स्यूं मतलब राख ज्यादा मने पाठ पढाने की को़शिश ना करिए ! नई तो तेरा पढा पाठ सारा भुला दूंगा !! चाल रास्तो नाप |
मास्टरजी चुप चाप निकल लिए |
पर गांव मैं आदमी तो रस्ते पे मिलेंगे ही | थोडी दूर चले नई की जोरू राम जी मिल लिए |
जोरू: अरे कोण जा रियो है र ?
चु.ला: ताऊ मैं हूँ चुन्नी (ऊँची आवाज मैं) |
जोरू : अरे चुन्नी कहाँ से आ रियो है बेटा ?
चु.ला.: ताऊ शहर गयो थो |(अब अगला प्रश्न चुन्नी लाजी के लिए बड़ा ही भारी था)
जोरू: शहर क्यूँ गयो थो बेटा? इतना बोलना हुआ की चुन्नी लालजी वहाँ से दौडे, दौड़ते दौड़ते गाँव के पुराने कुवे के पास पहुंचे| जो सुखा था | चुन्नी लालजी ने कुंवे मैं छलांग लगा दी | अब बात आग की तरह पुरे गांव मैं फैल गई | आस पास के गांव मैं फैल गयी ! मीडिया को पता लग गया | पत्र कार,कथाकार जितने भी कार बेकार थे सब कार ले ले कर आ गए | टी वी चेनल वाले भी पहुँच गए चुन्नी लालजी को निकलने के इन्तजाम किये गए | ऊपर से किसी ने आवाज लगाईं : चुन्नी लाल जी जिन्दे हो क्या!!!!!!!!!!!!!!|
कुंवे के अन्दर से आवाज आई: जिंदा हूँ जिंदा|
फिर ऊपर से किसी ने बोला : अरे भाई जिंदा हो तो हम निकलने का इन्तजाम करते हैं|
चुन्नी लालजी अन्दर से बोले :निकलने का इन्तजाम छोडो !!!
पहले ये बताओ गाँव के सारे लोग इक्कठा हुए की नहीं???
ऊपर से : अरे गाँव के ही नहीं आस पास के गाँव और मीडिया वाले भी इक्कठा हो गए हैं |
चुन्नी लालजी बोले : तो सबको बता दो की वो बकरा मैंने पांच सौ रुपये में बेचा था!!!!!! एक एक को बताना मेरे लिए मुश्किल है !!!

Saturday, July 4, 2009

पैदाइशी सुन्दरता

अपने मुह से अपनी तारीफ़ नहीं किया करते, पर क्या क्या करूँ वाकिया ही ऐसा घटित हुआ, की अगर अपनी महिमा न बताऊँ तो बात अधूरी रहेगी !! पैदाइशी सुन्दरता के कारण मुझे घर से सख्त आदेश थे की बिना बुर्का या मुह ढके घर से बाहर न निकलूं !! पुरे गली मोहल्ले के लोग एक झलक पाने को बेताब रहते थे !! पर चेहरा देखना तो जैसे दुर्लभ दर्शन थे | गाँव मैं किसी को भी मेरी सूरत का अंदाज आज तक नहीं है!! बुर्का हटाने का खामियाजा मुझे तब उठाना पडा जब मैं चिडिया घर देखने गया!! मैं गुवाहाटी के चिडिया घर मैं पहुंचा तो वहाँ तरह तरह के जीव जंतु देश और विदेश से लाये गए दुर्लभ और सुलभ सभी प्राणी थे!! बहुत सारे लोग हुक्कू मंकी का आनंन्द ले रहे थे, लोग हुक हुक करते बन्दर भी वापिस जोर से हुक हुक करके हुकलाता!! अच्छी भीड़ थी!! मैं घूमता घूमता एक जगह पहुंचा जहां पर शीशे के भीतर कुछ था!! मैंने बुर्का उतार लिया !! शीशे के अन्दर झांका देखा एक ख़ास किस्म का बन्दर जिसने कपडे पहन रखे थे !! मैंने उसको हाथ दिखाया ! उसने भी मुझे हाथ दिखा कर उतर दिया! मैं मुस्कुराया !! मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब जवाब मैं वो भी मुस्कुराया !! अब तो मैं उसके साथ आनंद लेने लगा !! मैं जैसे अपनी मुद्रा करते वो हाथो हाथ वैसे ही reply करता !! सच मैं बन्दर बड़े नकलची होते हैं, मैं मन ही मन सोच रहा था !! मैं अपने काम मैं मशगुल था ! ध्यान पीछे गया देखा जो भीड़ हुक्कू मंकी के पास थी अब वो शीशे वाले बन्दर के पास इक्कठी थी!! मैंने उनकी परवाह किये बिना उस बन्दर के साथ लगा रहा !!लोगों का जमावडा हमारी हरक़तों का आनंद उठा रहा था !! तभी देखा main गेट की तरफ से बहुत सारे लोग हाथों मैं केमरे लिए हमारी तरफ आ रहे थे !! मुझे समझते देर ना लगी की ये हमारी हरकतों को टी वी पर प्रसारित करने वाले हैं !! एक केमरा धारी मेरे नजदीक आया !! मैंने थोडी जगह छोड़ी !! वो बोला नहीं नहीं ठीक है ! केमरा मुझे शूट किये जा रहा था ! और ताबड़ तोड़ फ्लेश लाइटें मेरे चेहरे पे !! मैं समझ नहीं पा रहा था आखिर क्या माजरा है! मुझे लगा मैंने इस बन्दर को छेड़ के अच्छा नहीं किया !! मन ही मन अपने आपको कौसते हुए कहा रहा था तुझे क्या पड़ी थी मुरारी इस बन्दर को छेड़ने की पता नहीं अब क्या होगा!! एक पत्रकार ने मुझसे सवाल किया : सर आपसे एक बात पूछें ?? मैं बोला: एक क्यूँ बहुत सारी पूछिये !! पत्रकार महोदय धन्यवाद देते हुए बोले:: आप कब से ऐसे हैं?? मेरे दिमाग की घंटियाँ घनघना उठी मुझे यकायक ध्यान आया की मैंने बुर्का हटा दिया है | सारा माजरा समझ मैं आ गया की हो न हो मेरी सुन्दरता का जलवा बिखर गया है !! मैं कुछ सरमाते हुए बोला: जी बचपन से ही हूँ !! बुर्का लगाके रहता हूँ पर आज बुर्का भूल से खोल दिया !! पत्रकार महोदय मेरे और करीब आकर मुझसे हाथ मिलाते हुए बोले : ये तो भगवान् का दिया रूप है छुपाना क्या !! मैं बोला: वो तो ठीक है अब घर मैं कौन समझाए !! माँ को लगता है किसी की नजर लग जायेगी !! एक दुसरे सज्जन पास आये बोले शाम को "आजतक" चेनल देखिएगा आपका फोटो आयेगा!! जैसे तैसे वहाँ से निकला, निकलने से पहले बुर्का लगाना नहीं भुला !! घर पहुंचा आजतक चेनल खोल के बैठ गया!! अचानक देखा गुवाहाटी का चिडियाघर दिखा रहे थे !! एक रिपोर्टर चिल्ला चिल्ला के बोल रहा था: नमस्कार ये नजारा है गुवाहाटी के चिडियाघर का घर का यहाँ आज एक अजीब किस्म का बन्दर देखा गया !! मैं समझ गया की उशी शीशे वाले बन्दर की बात की जा रही है मैं उत्सुकतावश देखता गया की अभी मेरी भी फोटो दिखेगी!! पर देखा मैं कहीं नहीं था बस एक बन्दर था जो शीशे मैं देखकर अजीब अजीब हरकतें कर रहा था !! अचानक उस बन्दर के पास एक आदमी आया उससे वही बातें पूछ रहा था जो उसने मुझसे पूछी थी !! मैं मन ही मन सोच रहा था की कैसा कंप्यूटर का ज़माना आगया क्या मिक्सिंग की है, मुझे हटा कर बन्दर को लगा दिया!! पर जब उस बन्दर ने अपने चेहरे पर बुर्का लगाया तो मुझे बड़ा अजीब लगा !! मैं बाथरूम के शीशे की तरफ बढा|
घर की तरफ से शीशा देखना मुझे सख्त मना था!! पर आज तो देख के ही रहूंगा !! बाथरूम के अन्दर घुसा शीशे के ऊपर से कपडा उठाया और शीशे मैं झांका वही बन्दर जो चिडिया घर मैं देखा था शीशे अन्दर से झांक रहा था !! अब सारी वारदात समझ मैं आगई !! अपनी सूरत को अब कैसे दिखाऊं किसी को, बुर्का लगाया !! माँ के पास आया !! और माँ से बोला : माँ मुझे अपनी असली सूरत का पता चल चुका है !! पर मैं इतना बदसूरत क्यूँ हूँ!! माँ बताने लगी: बेटा हमने तुम्हे पाने के लिए शंकर भगवान् की बड़ी तपस्या की !! एक दिन जब भगवान् प्रगट हुए तो हमने संतान की मांग की !! शंकर भगवान् बोले: अभी कोई संतान स्टॉक मैं नहीं है! पर मैं जिद करती रही !! और भगवान् को भक्तों की जिद के आगे झुकना पङता है!! शंकर भगवान् ने उछल कर पेड़ से एक बन्दर पकडा और पूछ काट के पकडा दिया बोले: ये लो !! अब सारी बात समझ मैं आगई की क्यूँ मैं बंदरों की सी हरकतें करता हूँ !!