Thursday, July 23, 2009

मैं मिला हूँ भुत से!!!

बात राजस्थान के खाजुवाले शहर की है जो पकिस्तान के बॉर्डर के थोडा नजदीक है ! सन १९९५ की बात है जब में प्राइवेट राशन दूकान में प्रशिक्षण ले रहा था | आटा चावल नापने का, मघराज जो की दूकान का मालिक था, बहुत नेक और सीधा इंसान है, हम दोनों बड़े प्रेम से रहते थे |
एक दिन जब हम दूकान से शाम के वक़्त घर गए तो मघराज की बीवी जो अजीब अजीब हरकतें कर रही थी, जैसे खिल खिला के हँसाना, कभी रोना कभी गुस्सा, और बारबार ये ही दोहरा रही थी "हलुवा खाऊँगी" "हलुवा खाऊँगी"| मघराज की दोनों बहने काफी डरी हुई थी |
मघराज जो की भुत प्रेत पे विस्वास नहीं करता था| अपनी बीवी को झापड़ रसीद करते हुए बोला : ज्यादा जी में आ रही है क्या हलुवा खाने की ? लेकिन उसे थप्पड़ से कोई फर्क नहीं पडा निरंतर हलुवा खाने की रट लगाए रखी | मैं बोला मघराज भाभी जी में कोई हलुवे की भूखी आत्मा ने प्रवेश किया है |
मघराज बोला : अबे तेरे को भी हलुवा खाने की जी में है क्या ?
मैं बोला : देखो अगर भुत के लिए बनाओगे तो दो गासिये में भी ले ही लूंगा |
मघराज बोला : यार मुरारी ये भुत वुत कुछ नहीं होता, दरअसल औरतें जब काम करने का मन नहीं होता तो इस प्रकार के अड़ंगेबाजी करतीं हैं |
मैंने उसे समझाया : भाई मघु भाभी जी ऐसी नहीं है तुम क्यूँ नहीं किसी मौलवी या झाड़ फूंक वाले को बुला लाते | मेरे बार बार जोर देने पे मघराज एक मौलवी के पास गया| पर मौलवी के पास हमसे बड़ा कलाइंट बैठा था |
मोलवी ने मघराज को उपाय बता के टरका दिया | मघराज ने आकर बताया : मौलवी ने कहा है छोटी अंगुली के पौर को पकड़ कर जोर से भींचना (दबाना) |
मैं बोला: जल्दी करो इससे पहले की हलुवे का भूखा भुत कुछ अनिष्ट करे भाभी जी की छोटी अंगुली का पौर पकडो और जल्दी से भिन्चो |
अब मघराज अपनी बीबी के पास बैठ कर बोला : रे भुत इब तेरा देख में के करूँ हूँ ! कहने के साथ ही छोटी अंगुली के सिरे को जोर से दबाया |
मारे दर्द के भाभी जी के अन्दर बैठा भुत बोल पडा: जा रहा हूँ!!! जा रहा हूँ !! और भाभी जी शांत | पर अचानक मघराज की बहन जोर जोर से रोने लगी, और डरने लगी|
मघराज बोला : तुझे क्या हो गया ? इस पर मघराज की बहन बोली : देखो ये काली साडी में एक औरत यहाँ बैठी है | मौलवी जी ने मघराज को सुखी मिर्च का धुंवा करने के लिए भी बोला था | हाथो हाथ मिर्च का धुंवा किया और उस भुत को भगाया गया | अब सब कुछ सामान्य था |

घर के पिछवाडे में मघराज की बीबी और बहन बर्तन साफ़ कर रही थी और मुझे उनके पास खडा किया गया रात के लगभग ११:३० बज चुके थे | घर के पिछवाडे में boundry waal बनाई हुई थी जो लगभग तीन फीट ऊँची थी |
मेरी नजर अचानक उस baondry wall की तरफ गयी | आज भी सिहरन दौड़ जाती है जब वो वाकया करता हूँ तो |मैंने उस bouandry wall पे देखा एक विशालकाय काला शाया जिसका उपरतक कोई अंत नहीं था | मुझे डर तो बहुत लगा, पर मैंने भाभी जी को और मघराज की बहन को कुछ नहीं बताया |
मन ही मन सोच रहा था भूतों के बारे में लोगों से सूना है | किताबों में पढा है, आज साक्षात्कार भी हो गया | पर ज़रा पास में जाकर देखना होगा |
स:अक्षर सही बता रहा हूँ, में धीरेधीरे baoundry की तरफ बढ़ रहा था | पता नहीं कहाँ से हिम्मत आई कैसे बढ़ता गया, जैसे जैसे आगे बढ़ रहा हूँ उस लम्बे काले साए का आकार घटता चला जा रहा है| में और करीब गया अब उस शाये के और मेरे बिच की दुरी थी लगभग १५ फुट | शाये का आकार अब भी लगभग २५ फुट | मैंने निश्चय किया की और आगे बढा जाए कुछ हेल्लो हाय करके तो आएँ | शाये का आकार घटते घटते १० फुट हो गया | मुझे भी तसल्ली हो रही थी की ये भी मुझसे मिलना चाह रहा है, इसे पता है उतनी ऊंचाई पे मेरा हाथ पहुँच नहीं पाएगा तो हाथ मिलाएगा कैसे | उसका दोस्ताना रवैया देख कर हौशला और बढा, तो मैं भी बढा|

अब शाये का कद ५ फुट के आस पास आ गया | और हमारे बिच की दुरी लगभग ६ फुट अब तो मेने निश्चय किया की आज तो मुलाक़ात करनी ही है, बढ़ता रहा अब उसका कद हो गया था लगभग ३ फुट और एक आश्चर्य जनक बात ये हुई की उसके सर पे सिंग निकल आये थे | मैं एक दम करीब पहुँच गया | जनाब सर हिलाने लगे मैंने सर पे हाथ लगाया पता चला दीवार की उस तरफ पास में बंधी भैंस जो दीवार के ऊपर से इस तरफ झांक रही थी | मैंने उसे सहलाया |भुत से मुलाक़ात हो चुकी थी |

अगर मैं उस दिन उसके पास ना जाता, चुप चाप अन्दर आ के सो जाता तो मेरे लिए वो भुत ही रहता, और मन के अन्दर घुसे उस भुत को निकलाना शायद नामुमकिन हो जता | कुछ भूत ऐसे होते हैं इस बात का प्रत्यक्ष पता चला | इसीलिए कहते हैं डर के पास जाओ तो डर मिट जाता है !!!!