धन्य है भारत का मीडिया, एक से बढ़कर एक | ये कहीं कोई समाचार बनने से पहले ही पहुँच जाते है |(क्यूंकि हमें तो पता इनके जरिये ही पता लगता है सच हो या झूठ )
अभी केदारनाथ में आई भारी विपदा के समय भी कुछ ऐसा ही है | जो न्यूज़ चैनल लगाओ वही कहता है : जी हाँ हमारी टीम जो सबसे पहले पहुंची है घटना स्थल पर, कभी कभी बहम होता है कहीं इन्होने ने ही तो नहीं करवाई ये त्रासदी ?
कोई बड़ी बात नहीं ये कभी कभी इतने आस्तिक हो जाते है, की नास्तिक भी इनकी बात सुनकर अस्तिया जाता है| हो सकता है उसी समय भगवान् से कोई ऐसा वर मांग ले|
अभी तो जैसे इनके हाथ अंधे को बटेर वाली कहावत सच हो गई हो, कम से कम छ: महीने का चारा तो मिल ही गया |
ऐसा कहा जा सकता है की इनकी अभी सीजन चल रही है |इंडिया टी वी और आजतक में तो समाचार देखना किस्मत की बात हो गई है ,अगर आप कि किस्मत अच्छी है तो समाचार देख सकते है वरना निचे चल रही अपडेट लाइनों से काम चलाना होगा|
मेरी तो तकदीर सुखी लकड़ी से लिखी गयी है, जब भी ये चैनल लगाता हूँ नहाने धोने और गोरा बनाने वाली क्रीम बेचने वालों को ही पाता हूँ | वहीँ अगर आप अच्छे समाचार साधक है, और आप में धैर्य है तो एक अच्छे साधक की तरह सारी क्रीम साबुन देखने के बाद समाचार थोडा बहुत देख सकते है |
हर चेनल दर्शकों को लुभाने का प्रयास एक्सक्लूसिव तरीके से कर रहा है | मुझे तो लगता है अभी कुछ ऑफर और देने वाले हैं , "जी हाँ समाचारों के साथ पाइए एक अल ई डी २२" टी वी फ्री" , या : जी हां हमरा चैनल लगातार एक महीने देखिये और पाइए एक डीस एंटना फ्री| वैसे ये राय उनको पहुंचाई जा सकती है |
तरह तरह के प्रपंच रचे जा रहे हैं| जिन्होंने इस आपदा को झेला है उनसे फिर वो मंजर याद करवाके रुलाते हैं|
और तब कहते है :जी हाँ देखिये कैसे रो रहे हैं ? इनकी आँखों से आंसू अभी भी सूखे नहीं है ( और न हम सूखने देंगे )
जिन्होंने अपनों को खोया है उन सबसे जा कर कहते है हमारे चैनल के माध्यम से आप अपने पापा, मम्मी, भाई, बेटे से कहिये की आप कहीं भी है तो आ जाइए |
क्या वो घर छोड़ के गए हैं? रूठ के गए हैं? अगर कोई कहीं फंसा ही होगा (हजारों म कोई एक ) तो क्या वो अपने घरसे दुर हना चाहेगा ? कुछ नहीं इन सब बातों का एक ही मतलब है, भावनाओं से खेलकर अपना चैनल चलाना| देखने वालों को भावुक करना और उनमे उम्र भर की झूठी तस्सली देना जो उनको न जीने देगी न मरने |
अरे कुछ करना ही है तो जाओ उत्तराखंड के गाँव गांव, जंगल जंगल ,बस्ती बस्ती, फिरो कोई बचा होगा तो वहाँ मिलेगा जहा न तुम्हारा मीडिया है न कोई साधन |
उस नदी के किनारे किनारे डोलो जहां हो सकता है कोई डूबता हुआ बचा हो और इस हालत में न हो की घर पहुँच सके |
आएँगी ऐसी कहानिया भी सामने आएँगी की मौत को हराकर अमुक अपने घर इतने दीन बाद लौटा |पर हजारों में कोई एक |
अभी केदारनाथ में आई भारी विपदा के समय भी कुछ ऐसा ही है | जो न्यूज़ चैनल लगाओ वही कहता है : जी हाँ हमारी टीम जो सबसे पहले पहुंची है घटना स्थल पर, कभी कभी बहम होता है कहीं इन्होने ने ही तो नहीं करवाई ये त्रासदी ?
कोई बड़ी बात नहीं ये कभी कभी इतने आस्तिक हो जाते है, की नास्तिक भी इनकी बात सुनकर अस्तिया जाता है| हो सकता है उसी समय भगवान् से कोई ऐसा वर मांग ले|
अभी तो जैसे इनके हाथ अंधे को बटेर वाली कहावत सच हो गई हो, कम से कम छ: महीने का चारा तो मिल ही गया |
ऐसा कहा जा सकता है की इनकी अभी सीजन चल रही है |इंडिया टी वी और आजतक में तो समाचार देखना किस्मत की बात हो गई है ,अगर आप कि किस्मत अच्छी है तो समाचार देख सकते है वरना निचे चल रही अपडेट लाइनों से काम चलाना होगा|
मेरी तो तकदीर सुखी लकड़ी से लिखी गयी है, जब भी ये चैनल लगाता हूँ नहाने धोने और गोरा बनाने वाली क्रीम बेचने वालों को ही पाता हूँ | वहीँ अगर आप अच्छे समाचार साधक है, और आप में धैर्य है तो एक अच्छे साधक की तरह सारी क्रीम साबुन देखने के बाद समाचार थोडा बहुत देख सकते है |
हर चेनल दर्शकों को लुभाने का प्रयास एक्सक्लूसिव तरीके से कर रहा है | मुझे तो लगता है अभी कुछ ऑफर और देने वाले हैं , "जी हाँ समाचारों के साथ पाइए एक अल ई डी २२" टी वी फ्री" , या : जी हां हमरा चैनल लगातार एक महीने देखिये और पाइए एक डीस एंटना फ्री| वैसे ये राय उनको पहुंचाई जा सकती है |
तरह तरह के प्रपंच रचे जा रहे हैं| जिन्होंने इस आपदा को झेला है उनसे फिर वो मंजर याद करवाके रुलाते हैं|
और तब कहते है :जी हाँ देखिये कैसे रो रहे हैं ? इनकी आँखों से आंसू अभी भी सूखे नहीं है ( और न हम सूखने देंगे )
जिन्होंने अपनों को खोया है उन सबसे जा कर कहते है हमारे चैनल के माध्यम से आप अपने पापा, मम्मी, भाई, बेटे से कहिये की आप कहीं भी है तो आ जाइए |
क्या वो घर छोड़ के गए हैं? रूठ के गए हैं? अगर कोई कहीं फंसा ही होगा (हजारों म कोई एक ) तो क्या वो अपने घरसे दुर हना चाहेगा ? कुछ नहीं इन सब बातों का एक ही मतलब है, भावनाओं से खेलकर अपना चैनल चलाना| देखने वालों को भावुक करना और उनमे उम्र भर की झूठी तस्सली देना जो उनको न जीने देगी न मरने |
अरे कुछ करना ही है तो जाओ उत्तराखंड के गाँव गांव, जंगल जंगल ,बस्ती बस्ती, फिरो कोई बचा होगा तो वहाँ मिलेगा जहा न तुम्हारा मीडिया है न कोई साधन |
उस नदी के किनारे किनारे डोलो जहां हो सकता है कोई डूबता हुआ बचा हो और इस हालत में न हो की घर पहुँच सके |
आएँगी ऐसी कहानिया भी सामने आएँगी की मौत को हराकर अमुक अपने घर इतने दीन बाद लौटा |पर हजारों में कोई एक |