Monday, June 22, 2009

चिरक देवजी

मैंने एक व्यंग पहले भी कसा था पर वो राजस्थानी भाषा मैं होने के कारण सभी की समझ मैं नहीं आया इसीलिए हिंदी रूपांतरण पेश कर रहा हूँ| हमारे हिन्दू धर्म मैं कितने देवी देवता हैं कोई बता सकता है?? हाँ बता सकता है 33,000,000 || न इससे कम न इससे ज्यादा | अब ज़रा कोई भाई इनके नाम भी गिना दे तो बड़ी मेहरबानी होगी!! प्रचलित देवी देवताओं को डिपार्टमेन्ट वाइज सबको विभक्त किया गया है, मौसम विभाग के देवी देवता अलग हैं, ज्ञान ध्यान के अलग हैं, धन दौलत के अलग और, वीर शौर्य के अलग, सबकी अपनी अपनी टीम है, अपनी अपनी महिमा है, खैर अब जिन देवी देवताओं को हम नहीं जानते उनमे से एक का किस्सा मैं आपको बतलाने जा रहा हूँ||गांवों मैं आज भी ब्राह्मणों का दबदबा है, पंडितजी ने बोल दिया तो बस लोहे की लकीर है, पंडित जी बोल दिया की आज तिथि साठ्युं (६०) है तो कोई माई का लाल नहीं की उन्सठ्युं (५९) कर सके ||तो उसी ब्राह्मणों के मोहल्ले मैं एक गरीब हरिजन प्रजाति(प्रजाति कहने का तात्पर्य यहाँ ये है की उन्हें पशु सामान समझा जाना ) की महिला अपने शिशु को गोद लिए गयी | और बच्चे को अतिसार की शिकायत थी |जैसे ही वो मंदिर के नजदीक से गुजरी की शिशु ने चिर्क दिया (राजस्थानी भासा मैं चिर्क का मतलब दस्त, जो छोटा बच्चा करता है, बडो पर ये लागु नहीं होता बडो के दस्त को तो तल्डा कहते हैं )| अब जैसे ही बच्चे ने चिरका तो बेचारी दरिद्र महिला का मन भय से कांपने लगा || काटो तो खून नहीं, एक तो चिरका दुसरा ब्राह्मणों का मोहल्ला और उस पर भी गाज गिरी तो मंदिर के सामने, कुछ समझत आती की उससे पहले ही पंडितजी मंदिर से बाहर निकले , अब जैसे ही पंडित जी को देखा बेचारी दरिद्रा के पैर काम्पने लगे और जमीन पर बैठती हुई अपने सर को झुमाने लगी !! पंडित जी ने नजारा देखा पर उनकी समझ से परे था | पंडित जी ने पूछा : कोन है ? हरिजन महिला झूमते हुए बोली : धन्य हो! धन्य हो! महाराज !आपके गाँव पर और आपके ऊपर परमात्मा की अनुकम्पा हुई है ?? पंडितजी आश्चर्यचकित थे जैसा भी टूटा फुटा दिमाग चला सकते थे चलाया और निस्कर्स यही निकाला की हो न हो इस औरत मैं किसी देवता का शाया है अपने दोनों कर जोड़ कर विनीत भाव से नतमस्तक होते हुए गद गद गले से बोले : हे माते !! मुझे पूरी बात बताएं?| महिला ने सर झुमाना जरी रखते हुए बोली: हे भले ब्राह्मण भगवान् की तुम पर अति कृपा है ! परमात्मा का कल्कि अवतार तुम्हारे गांव मैं हुआ है !! पंडितजी विस्मय थे रुंधे गले से बोल नहीं निकल पा रहे थे | प्रेमाश्रुओं की झड़ी जैसे चेरा पूंजी मैं सावन आगया हो |महिला ने अपनी अंगुली से चिरका दिखाते हुए पंडितजी को कहा: ये देखो भगवान् का कल्कि अवतार "चिरक देव जी" || महिला ने कहना जरी रखा: अमृत्बेला के स्वप्न मैं प्रभु ने दरश दिए और श्री वचन उच्चारण किये बोले हे गंगली उठो और प्रभु कार्य मैं अपनी भूमिका निभाओ जाओ और गांववालों को बताओ की मेरा कल्कि अवतार ब्राह्मणों के मोहल्ले मैं मंदिर के सामने होगा || और सबके दुःख दर्द मिटाने मैं "चिरक देव" के नाम से जाना जाउंगा | अब इतना सुनना था की पंडितजी दंडवत करते हुए जोर से टिल्ली मारी : चिरक देवजी की जय"| अब क्या था आग की तरह बात गांव भर मैं फैल गयी श्रधालुओं की भीड़ लग गयी | पुरे गांव के लोगों ने चिरक देवजी की आरती की | हाथों हाथ चिरक चालीसा चिरक स्तुति बन गयी वो तो गाँव मैं लोग ब्लॉग के बारे मैं नहीं जानते थे वरना चिर्क्देव.ब्लागस्पाट .कॉम बनते देर कहाँ लगाने वाली थी | अब बात अगर यहीं समाप्त हो जाती तो कोई बात नहीं थी !! पर चिरक देव जी का चर्चा और पर्चा दूर दूर तक फेलने लगा | लोग दूर दूर से आने लगे अब khyaati इतनी फैल गयी तो बाबा लोगों ने एक बड़ा हवन करने की योजना बनाई गयी ! पुरे देश भर में पर्चे बंटवाये गए, बड़ी बड़ी कंपनियों को स्टाल लगाने के लिए कहा गया, और चिरक कथा, चिरक चालीसा, का कई भाषाओँ मैं रूपांतरण किया गया, और स्टाल लगा दिया गया| चिरक ताबीज,चिरक लहरी, चिरक झंडे, लगा के लोग गुणगान करते नहीं थकते, भव्य मंदिर बनाया गया,| अब बारी थी मीडिया की सभी चैनल वाले अपना केमेरा ले कर पहुँच गए : नमस्कार फलाने गांव मैं हुआ चिरक देवजी का अवतार ये देखिये ये हैं चिरक देवजी, अपना कलियुगी रूप लिए हुए करोडो भगतों का उद्धार करने आये हैं!! वगेरह वगेरह !! अब और क्या बताओं चिरक देवजी के मंदिर जा कर खुद ही दरसन करके आइये || ओम उदर्श्च निवाशय: chirkaay: नम:!!

Tuesday, June 16, 2009

जय बाबे की !!

क्या आप किसी धार्मिक स्थलों का दौरा करने जा रहे हैं ?? भाई माताजी को मेरा भी नमन कहना,बालाजी को प्रणाम, साईं बाबा को सलाम, क्या करूँ मेरा जरासा जाने का मन नहीं हो रहा, अरे भाई आप जहां जा रहे हैं बड़ी भीड़ है, वहाँ लम्बी कतार होगी, पुरे दिन से भूखे प्यासे खड़े लोग होंगे, न जाने कितनी बिमारियों वाले, कितने प्रेतों के सताए, दुखी मानव का एक ही सहारा है| श्रद्धा से भरे लोग, प्रेमाश्रुओं की झड़ी लगाते जाते हैं, जब रास्ता तय करते हैं तो, पहुँचने की जल्दी,अब ख़ुशी का पारा सातवें आसमान पर है अब तो पहुँच गए माता के धाम, मैया रानी को बड़े स्नेह से बड़े प्यार से निहारूंगा चरणों में लोटूंगा,लोटिया लोट हो जाउंगा | लेकिन ये क्या इतनी लम्बी लाइन, इस लाइन मैं आज नंबर आयेगा मुश्किल है| क्या करूँ ?? | मैं: हेल्लो भाई साहब वो उधर देखिये छोटी लाइन उसमे लगिए | आप: ओह धन्यवाद ! पर वहाँ बाकि लोग क्यों नहीं जाते?? | मैं: अरे भाई वो लाइन वी आई पी है | आप: ओह !! | मैं: वड्डे वड्डे लोगां की लाइन है भाई !!| आप: ओह क्या करूँ मैं तो बड़ा आदमी नहीं हूँ ?? | मैं: क्या बात करते हो ? बड़े बनने मैं कितना वक़्त लगता है यार पांचसो का पत्ता है? | आप: हाँ मिल जायेगा ! | मैं: तो बन गए बड़े आदमी वो जो पंडा घूम रहा है उससे कान्टेक्ट करो !
आप: हेलो पुजारीजी !! | पुजारी: क्या बात है? आप: ज़रा उस लाइन मैं मेरी भी व्यवस्था कीजिये न ?पुजारी: अरे भाई वो बड़े लोगों की लाइन है | आप : मैं भी छोटा नहीं हूँ ये देखो पांच सो का पत्ता |
पुजारी : आइये आइये |
हूँ आखिर दरसन हो गए माताजी के भाई साहब आपको चरणों मैं लोटे की नहीं | आप: नहीं भाई वहाँ तो ठीक से दर्शन भी नहीं करने देते कितने जोश से गया था ??
मैं: ओह लगता है आप पहली बार गए थे ?? क्यूँ क्या घर पे माताजी, बालाजी, साईं बाबा आते नहीं क्या | आपसे कोई माताजी बालाजी की कोई दुश्मनी है? जितना प्रशाद चढाते हो वही प्रसाद फिर बाज़ार मैं बिकता है| उशी प्रसाद से कितने आलसी बाबा मजा करते हैं, भाई मेरी बाबाजी लोगों से कोई दुश्मनी नहीं है, पर वो जब बाबाजी बन ही गए हैं, तो एक भी कोई मुझे सच्चा बाबजी बता दो जिसको मैं गौतम बुध्ध, साईं बाबा, या फिर कोई सच्चा साधू जिसको देखने से आत्मा प्रेम विभोर हो उठे | जिसकी आत्मा मैं इतनी शांति और शकुन हो की दृष्टी मिले तो निहाल हो जाऊं, प्रेम से आत्मा का अहसास हो मन हल्का हो कर उड़ने लगे | अगर नहीं है तो फिर इससे अछे मेरे बाबाजी हैं, पिताजी के बड़े भाई जो प्यार से निहारते हैं !!

Thursday, June 11, 2009

थूक वाले बाबा

साधू महात्माओं का बढ़ता संसार अजीबो गरीब बाबे, कामख्या गुवाहाटी मैं अम्बुवासी मेले में एक बाबा मुझे मिले जो की चिवंगुम वाले बाबा के नाम से जाने जाते थे, वो चिवंगम चबाते रहते थे और सबसे कहते थे की चिवंगम खाने से तन और मन दोनों की व्याधियां मिट जाती हैं, बाबा बनने के पीछे कुछ कारण छिपे होते हैं,आइये एक बाबा का किस्सा बयाँ करता हूँ!कोई फ़िल्मी स्टार आने वाला था, बहुत भारी भीड़ लगी थी, उसी भीड़ मैं एक बेरोजगार युवक जिसके दाढ़ी काफी लम्बी लम्बी थी,अपने दोस्त के साथ खडा था, जिसको खैनी खाने की लत थी, और खैनी खाकर कहीं भी थूक देना उसके लिए आम बात थी, तो आदतन उसने थूका और थूक पास मैं खड़े नौजवान पर जा गिरा और नोजवान भी ऐसा तगड़ा हट्टा कट्टा की अगर थप्पड़ रसीद कर दे तो डॉक्टर के पास इलाज न मिले, अब ऐसे व्यक्ति पर थूक गिरना मतलब सरे आम मुसीबत को गले लगाना था,वही हुआ नौजवान गुस्से से फुंफकारता हुआ, दढियल की तरफ लपका और गिरेबान को ऐसे पकडा जैसे कसाई बकरे को पकड़ता है, दढियल लट्पटाने लगा, नौजवान गुस्से से बोला : क्यों बे थूकने से पहले देख नहीं सकते?? अब दढियल क्या बोले गिरेबान छूटे तो हलक से आवाज निकले, पर उसी समय दढियल के दोस्त ने मोर्चा संभाला और बोला : अरे मुर्ख नौजवान क्या कर रहे हो इतने पहुंचे हुए महात्मा को इस कदर बेइज्जत कर रहे हो? नौजवान थोडा चकराया बोला: काहे का महात्मा ? दढियल का दोस्त बोला:अबे ये थूक वाले बाबा है जिसका कल्याण करना होता है बिना पूछे थूक देते हैं, लेकिन नौजवान कहाँ मानने वाला था बोला : आज ऐसा इलाज करूँगा की थूकने का बोलने से भी इनके गले से थूक नहीं निकलेगा, बाबाजी बनते हैं? अब इसी धक्का मुक्कि में दढियल को नौजवान के पाकेट मैं रखी लॉटरी की टिकट दिख गयी, अब दढियल बोला; उहू हु हु हु हु बच्चा तुम्हारी बहुत जल्दी एक करोड़ की लाटरी लगने वाली है, अब ये बात नौजवान को जम गई वो सोचने पर मजबूर हो गया की आखिर इसको कैसे पता चला की मैंने प्लेविन की एक करोड़ की लाटरी ले रखी है चमत्कार को नमस्कार है एक करोड़ की लाटरी आ रही है अगर बाबाजी को नाराज कर दिया तो आती हुई किस्मत रोक देंगे बाबा, नौजवान का गुस्सा ऐसे गायब हो गया जैसे गुस्से मैं भरी हुई माँ का गुस्सा अपने बच्चे को चोट लगने से गायब होता है, नौजवान दढियल के चरणों मैं लोटते हुए कहने लगा : बाबजी मुझे माफ़ कर दीजिये मैं अज्ञानी,मुर्ख नासमझ, नादान,परेशान,आपकी महिमा को समझ नहीं पाया, अब दढियल ने थोडी चैन की सांस ली, काफी भीड़ इक्कठी हो गयी इस माजरे मैं,नौजवान कहता रहा : बाबाजी मेरे एक करोड़ मत रोकिये उन्हें आने दीजिये, मैं बहुत गरीब आदमी हूँ बाबाजी, एक बार और थूक दीजिये बाबाजी एक बार और,दढियल बड़ी शान से बोला: घबरा मत बच्चा हम तो दुनिया के मान अपमान से परे हैं, आकथू!!!! और दढियल ने बची हुई खैनी का सारा झोल नौजवान के ऊपर उडेल दिया, नौजवान : मैं धन्य हो गया बाबाजी मैं धन्य हो गया, अब बाबाजी ने सोचा अब यहाँ से कल्टी मार लेने में ही भलाई है, दढियल बोला: ठीक है बच्चा अब जाओ और देखो दो दिन नहाना मत, (खैर सब बाबाओं की कुछ न कुछ अलग विशेसता तो दिखानी पड़ेगी न भाई) अब नौजवान चला गया, दढियल और उसका दोस्त अपनी खैर मनाते हुए घर की और चले की भाई जान बची तो लाखों पाए, बात को तीन दिन ही बीते थे की उस नौजवान की संजोग से सचमुच एक करोड़ की लाटरी निकल पड़ी, अब तो नौजवान दढियल को ढूँढ़ते ढूदते दढियल के घर पहुँच लिया, अब दढियल ने दूर से देखा तो झट पहचान गया, पहचानना तो था ही मुसीबत को कोई कैसे भूल सकता है,दढियल ने सोचा अब खैर नहीं ये आज बाबाजी बना के छोड़ेगा, इससे पहले की दढियल कुछ कहता नौजवान दंडवत करते हुए बोला : धन्य हो बाबाजी आप धन्य हो,मुझ गरीब का आपने कल्याण कर दिया बाबाजी मेरी लोटरी लगा दी,मुझे एक करोड़ रुपैये मिले हैं बाबा और मिलते ही मैं आपके पास आया हूँ, अब दढियल ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए स्थिति को काबू मैं किया बोले: उहू हु हु हु हु बच्चा हमें पता है, नौजवान बोला: बाबाजी आपके भंडारे मैं दस लाख चढाना चाहता हूँ ना मत कीजियेगा नहीं तो मेरा दिल दुखेगा, दढियल की आंखें चमक गयी, खैनी को मन ही मन धन्यवाद देता हुआ बोला: देखो बच्चा माया मोह से हम बंधे नहीं है पर तुमने हमें अपने बस कर लिया तो मना भी नहीं कर सकते भगवन तो भक्तों के बस होते हैं,जब तुम इतनी जिद ही कर रहे हो तो दस नहीं ग्यारह लाख चढा दो, शुभ होते हैं, नौजवान ख़ुशी से झूमता हुआ: बाबाजी आपने मेरी विनती स्वीकार करके मुझ पर एक और अहसान किया है, कहकर चरणों में ऐसा लेटा की उठने का नाम नहीं ले रहा प्रेमाश्रुओं की झडी लग गयी वातावरण पूरा भक्तिमय हो उठा, जोर से टिली मार के नौजवान ने जयकारा लगाया :थूक वाले बाबा की जय!!अब आस पास के लोगों मैं भी श्रद्धा जगी और थुकवाले बाबा के जयकारों से वातावरण गूंज उठा, अब क्या था सब बाबा जी से थुकवाने लगे, कईयों के काम संजोग से बन जाते, बाबाजी का चर्चा दूर दूर तक फैलता गया, बाबाजी और बाबाजी का दोस्त दोनों चढावे से मौज करने लगे, दूर दूर राज्यों से लोग आने लगे बाबाजी का पर्चा लोगों को रास आ रहा था पर इतना थूक कहाँ से लायें, अब तो बाबाजी थूक को वेस्ट भी नहीं कर सकते थे, रात को सोते वक़्त का थूक लोटे मैं जमा करते, पान खा कर लाल पिक भी डब्बियों मैं पेक करते,सोच के समय का थूक भी डब्बियों मैं जमा करते, अब जो दूर से आते थे वो डब्बियों वाला थूक ले कर जाते थे, कोई पूछता महाराज ये लाल थूक कोनसे कस्ट निवारण करता है, बाबाजी समझाते: बच्चा ये लाल थूक पानासन थूक है इससे दरिद्रता नस्ट होती है और घर मैं लाल कागज में रखने वाला सामान(सोना) आता है! और ये जो सफ़ेद वाला थूक है न ये सोचासन के समय का थूक है इससे कब्ज, एसिडीटी, और उदर के सारे कस्ट मिटते हैं! भीड़ इतनी की पूछो मत लोग थुकवाने के लिए उतावले अब माइक पे अनाउंस भी हो रहा है: कृपया लाइन से थुकवाने आते रहे, जिन्होंने थुकवा लिया है वो आगे बढ़ते रहें, एक आदमी एक बार ही थुक्वाए, माता बहनों को पहले थुकवाने देवें, बच्चों को थुकवाने के लिए गोदी मैं ले के रखें, और जो अपने साथ अपने लोगों को नहीं ला सके उनके लिए थूक की डब्बियों की व्यवस्था की गयी है ड्ब्बीयाँ ले जावें, और कृपया बाबाजी को अच्छी खैनी चढावें, थोडी देर रुक जाइये बाबाजी खेनासन कर रहें हैं (खैनी खा रहें हैं), बस अब क्या था बाबाजी से थुकवाने चुनाव के समय नेता लोग भी आने लगे,बाबाजी कहते असली थूक तो आप के लिए ही है,जनता बेचारी भोली है ओरिजनल थूक तो आप लोगों पर थूकता हूँ !!!आक थू!!!!!