साढ़े तीन महीने के लम्बे ब्लॉग वियोग के बाद मौक़ा मिला है, की आज अपनी विरह व्यथा लिखी जाए!
सचमुच बड़ी ही दुसह दुख:द और दुस्वार होती है ब्लॉग जुदाई! मायावी दुनिया की आपा धापी में ब्लॉग जगत के आत्मिक रस से वंचित रहना किसी क्रोधित ऋषि के श्राप भोगने जैसा है !
ऐसा लगता है जैसे पिजरे में से पंछी उड़ गया हो, खूंटे से गाय खुल गयी,कोल्हू से बैल निकल गया हो!जैसे पिंजरा, खूंटा और कोल्हू सुन्ने हो जाते हैं वैसे ही इस भारी भरकम शरीर में लगा हुआ ४० किल्लो का सर सुन्ना घर सा हो जाता है !
भगवान् दुश्मन को भी ब्लॉग विरह ना दे ,किसी बेनामी को भी ऐसी सजा ना दे!
जब भी किसी गधेडे को देखता तो ब्लॉग पात्र संतू की याद से मन व्यथित हो जाता था ! वो काली काली आँखों वाली, लम्बे लम्बे पूंछ वाली, चम्पाकली भैंस अक्सर सपनो में आ कर रंभाती थी !वो नरम नरम पैरों वाली, भूरी भूरी आँखों वाली, कोमल कोमल होठों वाली, मेरे पास आ करती थी म्याऊं !! तो रामप्यारी की याद से सुन्ना पड़ा माथा गूंजने लगता था !
साढ़े तीन महीने का दुनिया वास भोगने के बाद आज वापस ब्लॉग जगत में आना वैसा ही सुखद है जैसे लम्बी यात्रा कर अपने घर में पहुँचना!
Saturday, June 26, 2010
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