Friday, July 10, 2009

बकरा पांच सौ मैं बेचा

हमारे गाँव के चुन्नी लालजी बड़े गुस्सेल और चिडचिडे स्वभाव के व्यक्ति हैं | उनके पास एक बकरा है और वो उस बकरे को बेचना चाहते थे | पर कोई अच्छे दाम देने वाला मिला नहीं | गांव में कोई भी बकरे का व्यापारी आता है, तो गांव वाले ऊँगली सीध करते हैं चुन्नी लालजी की|
बताते हैं की : बकरा तो है चुन्नी भैया के पास जाओ ले लो|
अब व्यापारी आया चुन्नी लालजी के घर पे : जय रामजी की जी चुन्नी लालजी!!
चुन्नी लालजी: जे रामजी बोलो क्या बात है ?
व्यापारी: आपके पास बकरा बताया है!
चुन्नी लालजी: हाँ है तो??
व्यापारी : क्या भाव ताव है?
चुन्नी लालजी: ये देख ले बकरा अब बता कितने देगा ?
व्यापारी: देखिये इस बकरे के मैं आपको आठ सौ रुपये दे सकता हूँ!!
चु.ला : नहीं देना है, जा कहीं दूसरी जगह मिलता है तो ले ले|
इस प्रकार कई व्यापारी आये एक हजार रूपये तक दर मुलाई कर गए पर चुन्नी लालजी को लग रहा है जैसे वो बकरा नहीं ऊंट बेच रहे हैं| अब चुन्नी लालजी ने सोचा क्यूँ न मंडी जाया जाये और अच्छे दामों में बकरा बेचकर आया जाए |मन बनाया अगली सुबह चार बजे ही बकरे को ले के चल दिए मंडी, जो की गांव से २५ किलोमीटर दुरी पे है| पैदल चलना राजस्थानी गर्मी मैं वो भी चुरू जिले की गर्मी जहां रिकार्ड गर्मी पड़ती है | ८ -९ बजे पहुंचे मंडी वहाँ चारों तरफ घूम फिरने के बाद बकरा बिका मात्र पांच सो रुपैये मैं|अब क्या करें कहावत हैं ना की "चोर की माँ किसमे मुह दे के रोवे"| बकरा बेच के जैसे तैसे गाँव लिया |
अब गाँव का तो आपको पता ही है, लोगों को काम धाम रहता है नहीं बस कोई मिला की हालचाल पूछ लिया | वही हुआ गाँव मैं घुसते ही भानारामजी मिल गए पूछ बैठे : अरे चुन्नी काका कहाँ से आ रहे हो?
चु.ला: अरे शहर गया था?
भानारामजी: शहर क्यों भई?
चु.ला: अरे बकरा बेचने गया था|
भाना: ओहो हाँ तुम्हारे एक बकरा था|
चु.ला :के बात कर रिये बकरा मेरे नहीं बकरी का था|
भाना: हाँ हाँ वही कह रहा हूँ काका ! अच्छा कितने में बेचा काका?
चु.ला: पाच सौ में |
भाना : काका तेरा तो दमाग फिरग्या गाँव मैं बेपारी आया था तने १००० रुपैये तक दे रया था , नहीं बेचा, शहर जा के पांच सौ मैं बेच के आया ? वाह र काका?
चु.ला: अरे ज्यादा बकवास मत करिए, मेरो बकरों मैं बेच्यो तने के तकलीफ जा काम कर तेरो|
अब भाना रामजी से निपटने के बाद आगे मिल गए सीतारामजी | कमजोर दृष्टि से पहचानने की कोशिस करते हुए बोले :अरे कौन है भाई ?
चु.ला: चुन्नी हूँ काका |
सीतारामजी: अरे चुन्नी कहाँ जा कर आ गया?
चु.ला: शहर गया था काका |
सीतारामजी: अरे शहर किस काम से गए थे ?
चु.ला: अरे अपना वो बकरा बेच के आ रहा हूँ|
सीतारामजी: अच्छा अच्छा !! वो बकरा बेच दिया ? कितने मैं बेचा ??
चु.ला: पांच सौ रुपैये मैं बेचा काका |
सीताराम : र सित्यानाश जा तेरा !! गांव मैं बेपारी १००० रुपये दे रया था नहीं बेचा वहाँ बाप का नाम निकाल के आया है?? (मुह बनाते हुए) पांच सौ मैं बेचा!!
चुन्नी लाल का पारा सातवें असमान पे : रे काका मुह संभाल कर बात करियो !! काकाई धरी रे ज्यागी!! तन्ने क्यूँ पीढ होवे मेरो बकरों मेरो लेण मेरो देण चल भग्ज्या!!!
अब काका सीताराम रस्ते लग लिया | चुन्नी लालजी यात्रा और पूछ ताछ से परेशान,की आगे किशन लालजी मास्टर मिल गए |
किशन लालजी : अरे एक मिनट, चुन्नी भाया!! कहाँ से आयो?
चुन्नी लालजी गुस्सा तो बहुत आ रहा है पर क्या करें मास्टरजी हैं सो बताना तो पडेगा वरना लड़के की पढाई मैं व्यवधान |
चु.ला: अरे मास्टर यार शहर गयो थो |
मास्टरजी: ओहो !!शहर किस काम से गयो थो भाई?
चु.ला: अरे अपना वो बकरा था ना वो बेच के आ रहा हूँ |
मास्टरजी : अच्छा !!!! वो बकरा आखिर बेच ही दिया कितने रुपये बँटे भाई?
चु.ला: अरे यार क्या बने पाच सौ में बेचा |
मास्टरजी : रे बावली बुच्च घणा होशियार बणे था तू तो, गाँव मैं १००० रुपैये मैं भी नहीं बेचा और शहर जा कर ५०० में बेचा!! तू पागल होगया की होने जा रहा है?
चु.ला: रे ओय मायटर छोरान ने पढाने स्यूं मतलब राख ज्यादा मने पाठ पढाने की को़शिश ना करिए ! नई तो तेरा पढा पाठ सारा भुला दूंगा !! चाल रास्तो नाप |
मास्टरजी चुप चाप निकल लिए |
पर गांव मैं आदमी तो रस्ते पे मिलेंगे ही | थोडी दूर चले नई की जोरू राम जी मिल लिए |
जोरू: अरे कोण जा रियो है र ?
चु.ला: ताऊ मैं हूँ चुन्नी (ऊँची आवाज मैं) |
जोरू : अरे चुन्नी कहाँ से आ रियो है बेटा ?
चु.ला.: ताऊ शहर गयो थो |(अब अगला प्रश्न चुन्नी लाजी के लिए बड़ा ही भारी था)
जोरू: शहर क्यूँ गयो थो बेटा? इतना बोलना हुआ की चुन्नी लालजी वहाँ से दौडे, दौड़ते दौड़ते गाँव के पुराने कुवे के पास पहुंचे| जो सुखा था | चुन्नी लालजी ने कुंवे मैं छलांग लगा दी | अब बात आग की तरह पुरे गांव मैं फैल गई | आस पास के गांव मैं फैल गयी ! मीडिया को पता लग गया | पत्र कार,कथाकार जितने भी कार बेकार थे सब कार ले ले कर आ गए | टी वी चेनल वाले भी पहुँच गए चुन्नी लालजी को निकलने के इन्तजाम किये गए | ऊपर से किसी ने आवाज लगाईं : चुन्नी लाल जी जिन्दे हो क्या!!!!!!!!!!!!!!|
कुंवे के अन्दर से आवाज आई: जिंदा हूँ जिंदा|
फिर ऊपर से किसी ने बोला : अरे भाई जिंदा हो तो हम निकलने का इन्तजाम करते हैं|
चुन्नी लालजी अन्दर से बोले :निकलने का इन्तजाम छोडो !!!
पहले ये बताओ गाँव के सारे लोग इक्कठा हुए की नहीं???
ऊपर से : अरे गाँव के ही नहीं आस पास के गाँव और मीडिया वाले भी इक्कठा हो गए हैं |
चुन्नी लालजी बोले : तो सबको बता दो की वो बकरा मैंने पांच सौ रुपये में बेचा था!!!!!! एक एक को बताना मेरे लिए मुश्किल है !!!

7 comments:

  1. ्बहुत सुंदर बेचारा चुन्नी लाल, चलो अच्छा हुया, बच तो गया ना

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  2. आखिर चुन्नीलाल ने सबको इकट्ठा कर अपनी बात एक ही बार में कहने की तरकीब ढ़ूँढ़ ही ली। मजेदार पोस्ट।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. bahut hee sundar rachana ...............chunnilal tarkib dund liye .........ek majedar ant

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  4. ha ha ha ha ha bechaare chunni lal ji!!!!!!

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  5. हा हा हा हा...वाह्! बहुत बढिया। आपकी इस रचना नें तो अन्त तक बांधे रखा।

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  6. हा हा मुरारी भाई,
    बड़े ही दिलचस्प आदमी रहे आपके ये चुन्नीलाल जी। मजा आ गया पोस्ट पढ़कर।

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  7. वाह क्या बात है! बड़ा ही मज़ेदार पोस्ट! बहुत खूब!

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आपके लिए ही लिखा है आप ने टिपण्णी की धन्यवाद !!!