क्या आप किसी धार्मिक स्थलों का दौरा करने जा रहे हैं ?? भाई माताजी को मेरा भी नमन कहना,बालाजी को प्रणाम, साईं बाबा को सलाम, क्या करूँ मेरा जरासा जाने का मन नहीं हो रहा, अरे भाई आप जहां जा रहे हैं बड़ी भीड़ है, वहाँ लम्बी कतार होगी, पुरे दिन से भूखे प्यासे खड़े लोग होंगे, न जाने कितनी बिमारियों वाले, कितने प्रेतों के सताए, दुखी मानव का एक ही सहारा है| श्रद्धा से भरे लोग, प्रेमाश्रुओं की झड़ी लगाते जाते हैं, जब रास्ता तय करते हैं तो, पहुँचने की जल्दी,अब ख़ुशी का पारा सातवें आसमान पर है अब तो पहुँच गए माता के धाम, मैया रानी को बड़े स्नेह से बड़े प्यार से निहारूंगा चरणों में लोटूंगा,लोटिया लोट हो जाउंगा | लेकिन ये क्या इतनी लम्बी लाइन, इस लाइन मैं आज नंबर आयेगा मुश्किल है| क्या करूँ ?? | मैं: हेल्लो भाई साहब वो उधर देखिये छोटी लाइन उसमे लगिए | आप: ओह धन्यवाद ! पर वहाँ बाकि लोग क्यों नहीं जाते?? | मैं: अरे भाई वो लाइन वी आई पी है | आप: ओह !! | मैं: वड्डे वड्डे लोगां की लाइन है भाई !!| आप: ओह क्या करूँ मैं तो बड़ा आदमी नहीं हूँ ?? | मैं: क्या बात करते हो ? बड़े बनने मैं कितना वक़्त लगता है यार पांचसो का पत्ता है? | आप: हाँ मिल जायेगा ! | मैं: तो बन गए बड़े आदमी वो जो पंडा घूम रहा है उससे कान्टेक्ट करो !
आप: हेलो पुजारीजी !! | पुजारी: क्या बात है? आप: ज़रा उस लाइन मैं मेरी भी व्यवस्था कीजिये न ?पुजारी: अरे भाई वो बड़े लोगों की लाइन है | आप : मैं भी छोटा नहीं हूँ ये देखो पांच सो का पत्ता |
पुजारी : आइये आइये |
हूँ आखिर दरसन हो गए माताजी के भाई साहब आपको चरणों मैं लोटे की नहीं | आप: नहीं भाई वहाँ तो ठीक से दर्शन भी नहीं करने देते कितने जोश से गया था ??
मैं: ओह लगता है आप पहली बार गए थे ?? क्यूँ क्या घर पे माताजी, बालाजी, साईं बाबा आते नहीं क्या | आपसे कोई माताजी बालाजी की कोई दुश्मनी है? जितना प्रशाद चढाते हो वही प्रसाद फिर बाज़ार मैं बिकता है| उशी प्रसाद से कितने आलसी बाबा मजा करते हैं, भाई मेरी बाबाजी लोगों से कोई दुश्मनी नहीं है, पर वो जब बाबाजी बन ही गए हैं, तो एक भी कोई मुझे सच्चा बाबजी बता दो जिसको मैं गौतम बुध्ध, साईं बाबा, या फिर कोई सच्चा साधू जिसको देखने से आत्मा प्रेम विभोर हो उठे | जिसकी आत्मा मैं इतनी शांति और शकुन हो की दृष्टी मिले तो निहाल हो जाऊं, प्रेम से आत्मा का अहसास हो मन हल्का हो कर उड़ने लगे | अगर नहीं है तो फिर इससे अछे मेरे बाबाजी हैं, पिताजी के बड़े भाई जो प्यार से निहारते हैं !!
बहुत करारा लिखा आप ने , मेरे मन की बात.... बडे बडॆ लोग, ओर यह सब पंडे, अगर मां के भगवान के दरशन करने है तो हमे कही दुर जाने की जरुरत ही नही, घर मै ही मां बाप की सेवा कर लो,
ReplyDeleteबहुत खुब
धन्यवाद
बहुत ख़ूबसूरत लिखा है आपने! मेरा तो ये मानना है कि घर में पिताजी और माताजी की सेवा करना ही सबसे पुण्य का काम होता है और उनका आशीर्वाद हमेशा मिलता है!
ReplyDeleteआपके कमेन्ट के लिए धन्यबाद!!!!!!!!!आपने बहुत सरल शब्दों में मंदिरों में व्याप्त अव्यवस्था को उजागर किया है...बहुत बहुत बधाई!!!!!!!!!
ReplyDeleteआप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteएक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
aapka blog acha laga mujhe! Bahut khoob likhaa aapney!
ReplyDelete"आइये आप ही की कमी थी!!!!" ये पढ़के हंसी आ गयी मुझे मुरारी जी!!!!!
ReplyDeletebahut sateek , shandar likha hai...
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