Wednesday, July 15, 2009

आखिर चोट माथे पे कैसे लगी!!

चुन्नी लालजी के किस्से बहुत सारे है | सब हकीकत कोई मिलावट नहीं एक दम शुद्ध गांवलिया |
किसान आदमी को बहुत सारे काम रहते हैं ऑफ सीज़न में भी | ऐसे ही एक बार हल की रेपैरिंग करने बैठे थे | सोचा आगे खेती की सीज़न आ रही है | हल को थोडा ठीक ठाक कर लिया जाए | तो हल के अन्दर जो लोहे की पत्ती होती उसे निकालने में लगे हैं ! अंगने में लम्बी टांगो को जमीन पर पसार कर बेठे और दोनों हाथों से खिंच कर हल की पत्ती को निकालने का प्रयास करने लगे | कोशिश करते करते अचानक पत्ती निकल गई | सर को पूरी तरह ऊपर झुका रखा था | फलस्वरूप झटके से निकली पत्ती सीधी माथे पर जा लगी और माथे पर खरोंच आ गई, पर ज्यादा चोट नहीं आई|
पर चुन्नी लालजी दहाड़े मार मार कर रोने लगे |लोगों को आश्चर्य हुआ |
वहाँ उपस्थित लोगों ने समझाया : अरे चुन्नी भैया ज्यादा चोट नहीं आई इतना क्यों रो रहे हो?
चुन्नी भैया बोले - इसलिए नहीं रो रहा की चोट लगी है, इसलिए रो रहा हूँ, की अब किस किस को बताउंगा की चोट कैसे लगी ? पूछने वाले पूछ पूछ के मार लेंगे, की हल की पत्ती की चोट आखिर सर पे कैसे लगी ? बार बार कुवे में भी नहीं कूद सकता !!!

7 comments:

  1. बढिया है ......सुन्दर

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  2. kahne ko bahut hi gahari baat kah gayi

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  3. बहूत acche......... .......लाजवाब kissa banaaya है

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  4. वाह पारीक जी आप तो बढ़िया बंगला बोलते हैं और क्यूँ नहीं आप तो सिलिगुरी और दुर्गापुर में रह चुके हैं ! हाँ आपने बिल्कुल सही कहा बंगला अस्सामेसे और ओरिया तीनों मिलता जुलता है! आपका ये पोस्ट बहुत बढ़िया लगा!

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आपके लिए ही लिखा है आप ने टिपण्णी की धन्यवाद !!!