चुन्नी भैया के कारनामे इतने हैं की एक रामयाणाकार पुस्तक प्रकाशित की जा सकती है| एक बार दोस्तों के साथ बैठे पतियाँ खेल रहे थे |
एक गुबरीला(गोबर मैं रहने वाला जीव) उनकी तरफ आता है और पैर पे चढ़ने लगता है | अब चुन्नी लालजी उसे पकड़ के दूर फेंकते हैं | फिर खेलने में व्यस्त | गुबरीला फिर आता है, और उनके पैर पे चढाने लगता है|
चुन्नी लालजी फिर उसे हाथ से पकड़ के दूर फेंकते हैं, धीरे धीरे कुछ बुदबुदा भी रहे हैं| अब साथी लोग शिकायत करते हुए कहते हैं : अरे के हुयो चुन्नी पत्ता डाल |
चुनी : अरे डाल रहा हूँ यार | चुन्नी भैया हार रहे हैं इतने में गुबरीला आदतन फिर आता है|( गुबरीले के बारे में ये कहावत है की जिधर से फेंकते हैं मुड़कर फिर उसी दिशा में जाता है ) जैसे ही चुन्नी भैया के पर पे चढ़ता है | क्रोधित सांड के माफिक गुबरीले को हाथ में पकड़ते हैं, और दौड़ लगाते है गाँव के खाली पड़े कुए की तरफ | अब कुवे के पास पहुँच कर गुबरीले को कुवें में फ़ेंक देते है | और फिर जोर से आवाज लगाते हैं: आजा !!! अब आजा !!! आ के दिखा मैं दो घंटा यहीं हूँ आ !! आजा !!! आता क्यूँ नहीं!!!
बड़ा तेज गुस्सा है आपके चुन्नीलाल जी का.
ReplyDeleteमुल्ला नसीरुद्दीन के बिरादर लगते हैं ये सज्जन चुन्नीलालजी!
ReplyDeleteगुस्सा करना बिल्कुल उचित नहीं है! चुन्नीलालजी तो बहुत ही गुस्सेवाले हैं और मुझे तो डर ही लग रहा है !
ReplyDeleteInteresting post .:)
ReplyDeletethanx for visiting my post
चुन्नीलाल जी तो
ReplyDeleteबहुत गुणी निकले।
एक रामयाणाकार पुस्तक!नया शब्द मिला..by the way...chunni lal ko gussa kyon aata hai??
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