Saturday, July 25, 2009

मेरे देश से मत लो पंगा |

देखो मेरे देश से मत लो कोई पंगा |
ढंग से रहो पाड़ोसी वरना कर देंगे बेढंगा ||

पता नहीं क्या तुमको कैसे वीर जवान हमारे है|
डाट डाट रक्खा है इनको कबसे हाथ संवारे है ||
सिक्ख गोरखा जाट मराठा आसामी और बंगा | ढंग से रहो .... .|

सोए शेर जवान हमारे क्यूँ इनको जगाते हो |
ओ दुर्बुद्धि ओ नालायक क्यूँ अपनी मौत बुलाते हो||
चीर डालेंगे पल में तुझको मार के अपना पंजा | ढंग से रहो......|

22 comments:

  1. mat lo humse panga
    kar daalenge nanga
    ha ha ha ha ha ha ha ha

    badhaai !

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  2. चीर डालेंगे पल में तुझको......
    बहुत खूब.

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  3. ओह, जो सीमा पर एडवाण्टेज पाते हैं, वह मेज पर गंवाते हैं हम!

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  4. काश इन पंक्तियों को हमारे नेता चरितार्थ कर पाते.

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  5. देखो मेरे देश से मत लो कोई पंगा |
    ढंग से रहो पाड़ोसी वरना कर देंगे बेढंगा ||

    वाह...वाह...जवाब नहीं आपका भी ....काफी खींच के चांटा मारा है ....!!

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  6. बहुत सुंदर रचना. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. सही कहा आपने! बहुत बढ़िया लगा!

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  8. बहुत बढ़िया लगा!वाह...

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  9. "सताए तो सही कोई, औलाद को मेरी , चीर के न रख दूँ सीने कई ..!"

    आपकी 'बागवानी ' पे टिप्पणी देखी ...हाँ ..बिल्कुल , पौधे ज़रूर दर्शाते हैं अपना प्यार ...जब ,जब मै बीमार पड़ जाती हूँ , भरी बरसात मे इनके पत्ते पतझड़ की तरह झड़ जाते हैं ..!
    पिछले १० दिनों से घरसे दूर हूँ...पता नही मेरे पौधों का क्या हाल होगा??

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  10. बहोत खूब!!!!!!!!!!!!!!वाह!!!सुंदर । ये है ज़वानोंवाली बात।

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  11. बिल्कुल सही कहा आपने! बहुत ही सुंदर रचना!

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  12. ... जबरदस्त व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!

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  13. बिल्कुल दुरूस्त कहा आपने!!!!

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  14. parik ji shandar rachna hai.....
    main lout aya hu aapko pareshan karne...

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  15. आपने तो ठंडे पड़ रहे खून में तो उबाल ही ला दिया.............

    बीर रस की रचना ने तो हलचल ही मचा दी.
    सलाम...................

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  16. sach kaha hai ....h aha h aha
    jay hind.

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आपके लिए ही लिखा है आप ने टिपण्णी की धन्यवाद !!!