दिल के दर्द से अनजान था, आखिर कौन सी पीड़ा घुट रही थी!!
जुबान से पूछा दिल मैं क्या दर्द है बता, ज़ुबां कुछ न कह पाई
पर गम का वो गुब्बारा आखिर फूट पड़ा और आँख भर आई
हाथ ख़ुद ब ख़ुद जुड़ गए और वतन को सलाम किया |
मैं क्योँ भुला रहा तुझे कभी तेरे लिए कोई काम न किया ||
उलझे रहते हैं अपनी ही दुनिया में, तेरे हालात अब बद से बदतर हो पड़े |
देश और देशवाशियों के हालात पे हम फूट फूट कर रो पड़े||
हाथ ख़ुद ब ख़ुद जुड़ गए और वतन को सलाम किया
ReplyDeleteमैं क्योँ भुला रहा तुझे कभी तेरे लिए कोई काम न किया ..
यदि हर देशवासी ऐसे ही जाग जाए ..... अपनी ग़लती का एहसास करे तो अपना देश फिर सोने की चिड़िया बन जाएगा .... अच्छी रचना है ....
.... प्रभावशाली रचना !!!
ReplyDeletesuman ji ke anmol vichaaron se sahmat
ReplyDeleteउलझे रहते हैं अपनी ही दुनिया में, तेरे हालात अब बद से बदतर हो पड़े |
ReplyDeleteदेश और देशवाशियों के हालात पे हम फूट फूट कर रो पड़े||
-वाह!! बहुत भावपूर्ण!
भई वाह्! मुरारी लाल जी, आज पता चला कि आप तो कवितागिरी भी करते हैं :)
ReplyDeleteबहुत बढिया लगी ये रचना...
शुभकामनाऎँ!!!